झारखंड के गिरिडीह जिले के दुलियाकरम बाल मित्र ग्राम के पूर्व बाल मजदूर नीरज मुर्मू को ब्रिटेन के प्रतिष्ठित डायना अवार्ड से सम्मानित किया गया है। 21 वर्षीय आदिवासी युवक नीरज मुर्मू को यह सम्मान बाल श्रम के उन्मूलन और समाज के कमजोर तबके के 200 बच्चों को समुदाय के साथ मिलकर शिक्षित करने के लिए दिया गया है।
बाल मित्र ग्राम यानी बीएमजी का संचालन कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा किया जाता है।
नीरज के व्यक्तित्व विकास और सामाजिक बदलाव की प्रेऱणा में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी और उनके द्वारा स्थापित संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका है। बाल मित्र ग्राम श्री कैलाश सत्यार्थी की बच्चों के लिए खुशहाल और अनुकूल दुनिया बनाने की अभिनव और जमीनी पहल है। देश-दुनिया में ऐसे गांवों का निर्माण किया जा रहा है। यहां के बच्च अपने सामाजिक बदलाव के जज्बे और उपलब्धि की वजह से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर रहे हैं।
बीएमजी के सहयोग और प्रेरणा से अभ्रक खदान से बाल मजदूरी से मुक्त होकर नीरज स्कूल में दाखिला लेता है। फिर शिक्षा के महत्व को समझते हुए वह संकल्प लेता है कि अपने जैसे बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराएगा और उन्हें शिक्षा दिलाएगा। नीरज संकल्प तो ले लेता है लेकिन उनकी राह में कई अड़चनें आती हैं। नीरज को बाल मजदूरी करने वाले बच्चों के माता-पिता को शिक्षा का महत्व समझाने और अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी। इसके लिए उसने अपने गांव में कई बार रैलियों और अभियानों का आयोजन किया। आखिरकार, नीरज के प्रयास रंग लाने लगे और उसके विचारों को लोगों का समर्थन मिलने लगा। यह नीरज की इच्छाशक्ति का ही नतीजा है कि सरकारी स्कूलों में बच्चों, विशेषकर लड़कियों के नामांकन दर में काफी बढ़ोतरी हुई है। नीरज कहते हैं-‘‘अभी तो यह शुरुआत है। उन्हें दुलियाकरम बीएमजी जैसे कई गांव और बनाने हैं।’’
बाल मित्र ग्राम का मतलब ऐसे गांवों से है जिसके सभी बच्चे बाल मजदूरी से मुक्त हों और वे स्कूल जाते हों। वहां चुनी हुई बाल पंचायत हो और जिसका ग्राम पंचायत से तालमेल हो। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ उनमें नेतृत्व की क्षमता के गुण भी विकसित किए जाते हों। बाल मित्र ग्राम के बच्चे पंचायतों के सहयोग से गांव की समस्याओं का समाधान करते हुए उसके विकास में अपना सहयोग भी देते हैं। यहां के कई बच्चों को अपने सामाजिक बदलाव के जज्बे और उपलब्धि की वजह से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है। कई पूर्व बाल मजदूर बच्चे एक ओर जहां अशोका फेलो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बच्चों का नोबेल पुरस्कार माना जाने वाला इंटरनेशनल चिल्ड्रेन पीस प्राइज से भी सम्मानित किया जा चुका है। राजस्थान के विराटनगर तहसील के डेरा बीएमजी की ललिता दुहारिया अशोका फेलो के साथ-साथ स्वीडन की वर्ल्ड चिल्ड्रेन पीस प्राइज की मौजूदा जूरी की सदस्य भी हैं। वहीं जयपुर, राजस्थान के रहने वाले ओमप्रकाश गूजर को इंटरनेशनल चिल्ड्रेन्स पीस प्राइज से सम्मानित किया जा चुका है। पिछले साल बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने अपने प्रतिष्ठित चेंजमेकर अवार्ड से भारत के दो लोगों को सम्मानित किया था। एक थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तो दूसरी थी राजस्थान के हिंसला बीएमजी का प्रतिनिधित्व करने वाली पायल जांगिड। इस साल जो डायना अवार्ड नीरज मूर्मू को मिला है, पिछले साल झारखंड के गिरिडीह जिले के जामदार बीएमजी की चंपा को सामाजिक बदलाव के लिए यह पुरस्कार मिल चुका है। ऐसे पुरस्कार हासिल करने वाले सत्यार्थी आंदोलन के बच्चों की लंबी फेहरिस्त है।
शिक्षा पाने से कोई बच्चा पीछे न रह जाए, इसके लिए नीरज ने 2018 में केएससीएफ के सहयोग से स्थानीय स्तर पर एक स्कूल की स्थापना की पहल की। यहां उन बच्चों को पढ़ाना-लिखाना शुरू किया, जिन्हें शिक्षकों के अभाव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल नहीं हो पाती है। नीरज से शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे अब जागरूक हो गए हैं और वे भी अपने गांव से बाल मजदूरी, बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराईयों को दूर करते हुए बच्चों का स्कूलों में नामांकन करवाने जैसे बदलाव के कार्यों में जुटे हुए हैं। नीरज ने अभ्रक खदानों से 20 बाल मजदूरों को भी मुक्त कराया है। नीरज वर्तमान में अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करते हुए खेती-किसानी में अपने पिता का हाथ भी बंटा रहे हैं। डायना अवार्ड के प्रमाणपत्र में सामाजिक बदलाव की दिशा में नीरज की नेतृत्व क्षमता की सराहना की गई है और उन्हें ‘‘चेंजमेकर’’ के रूप में संबोधित किया है।
श्री कैलाश सत्यार्थी ने चार दशक के अपने संघर्षों और उसके नतीजों से यह साबित कर दिया कि बाल मजदूरी से अभिशप्त गरीब और समाज के हाशिए के बच्चों को अगर शिक्षा का समान अवसर मिले तो वे न केवल अपना जीवन बदल सकते हैं, बल्कि अपने जैसे अन्य बच्चों की जिंदगी में भी परिवर्तन ला सकते हैं। नीरज ऐसा ही एक उदाहरण है। उसने अपना जीवन तो बदला ही, अपने जैसे और बाल मजदूरों को शिक्षा के लिए प्रेरित कर पूरा गांव ही बदल डाला। उसके प्रयास से शिक्षा हासिल करने वाले पूर्व बाल मजदूर अब और लोगों को शिक्षा और बाल मजदूरी के खिलाफ जागरुक कर रहे हैं। इस तरह से नीरज ने सत्यार्थी आंदोलन की अगली पीढी तैयार कर दी है। और यह अगली पीढ़ी, अपनी अगली पीढ़ी को तैयार करेगी। यह सिलसिला तबतक जारी रहेगा, जबतक बाल मजदूरी खत्म नहीं हो जाती। चालीस साल पहले श्री सत्यार्थी ने अकेले यह सिलसिला शुरु किया था। आज यह एक आंदोलन की शक्ल में पूरी दुनिया में फैल चुका है। श्री कैलाश सत्यार्थी की प्रेरणा से दुनियाभर में हजारों “नीरज” बदलाव में जुटे हैं।